'छप्प!'
नीम्बू निचुड़ा तो नहीं पर हाथ से फ़िसल कर दाल में जा गिरा और दाल का सारा तड़का सफ़ेद कमीज़ पर| सुधाकर जी ने देखा कि कहीं कोई उनकी खिल्ली तो नहीं उड़ा रहा| यह जानकर कि किसी ने उन्हें नहीं देखा उन्हें राहत मिली| फिर अफ़सोस हुआ| और फिर जी खिन्न हो गया| जीवन का कोई महत्व नहीं| अर्थ नहीं| आपके ऊपर दाल गिर जाए और कोई हँसे तक ना| अजी हँसना तो दूर, किसी ने ध्यान तक ना दिया| जीवन अर्थ खो रहा है| कुछ करना होगा|
'कुछ करना होगा!' सुधाकर जी ने घर जाते ही अपने विचार व्यक्त किये| शाम को चाय पर शर्मा जी को भी बताया| फिर यादव जी के यहाँ गए और फिर यादव जी को साथ लेकर पूरे मोहल्ले में तीन घंटे तक सारे घर घूमे| और सबको बताया कि कुछ करने का वक़्त आ गया है| सभी ने हामी भरी|
जब गजेन्दर बाबू को पता चला तो वह डर गए| कहीं लोगो को कुछ करने कि आदत हो गयी तो उनकी वार्ड की सीट का क्या होगा? कहीं यह सुधाकर का बच्चा अगले चुनाव में ना खड़ा हो जाये? अतः कुछ करना होगा| अगले ही दिन शाम को गजेन्दर बाबू ने पार्क में एक अर्जेंट मीटिंग बुला ली| सारे वार्ड को निमंत्रण दिया और वार्ड के सारे कर्मठ लोग एकत्रित हुए| कोई दो हज़ार के लगभग नर-नारी आ पहुंचे|
गजेन्दर बाबू ने फ़ौरन अंग्रेजी निकाल के गिलास में पलट दी और माइक में कहा-
सभी इस बात से सहमत हुए और कुछ करने कि शपथ ली| अब हम कुछ करके ही दम लेंगे|
'क्या करना होगा?' किसी ने पूछा| 'कुछ विराट करना होगा', गजेन्दर बाबू ने गर्जना की|
'क्या सड़क बनानी होगी?' 'क्या बिजली के खम्बे लगाने होंगे?' 'क्या पानी की टंकी लगानी होगी?' लोगों में प्रश्नों का सैलाब उमड़ पड़ा|
'अरे आन्दोलन लाना होगा! कुछ प्रचंड करना है|' गजेन्दर बाबू ने कुर्सी से उठ कर कहा|
'पर पता भी तो हो की क्या करना है?' किसी ने पूछा|
'अरे अगर यही पता हो की क्या करना है तो करने के लिए रहा ही क्या? जो ज्ञात है उसका कोई मूल्य नहीं| उसमें कोई यश नहीं| जो अज्ञात है, अमूर्त है, वही महान है|' गजेन्दर बाबू के मुख पर विचित्र सी कांति छा गयी|
'कल रात बिजली नहीं आई!' यह आवाज़ आयी| 'और बच्चे सो ना सके|'
गजेन्दर बाबू तमतमा उठे| 'अरे मूर्खों उठो| जागो कि तुम्हे कुछ करना है|'
समूह में जोश कि लहर दौड़ गयी| कुछ युवा नेता आगे आकर नारे लगाने लगे- 'करना है! नहीं तो मरना है!' करीब दस और अंग्रेजी खोलनी पड़ गयीं| 'हम अब करने को तैयार हैं| आन्दोलन के लिए तैयार हैं|' सभी को अब गजेन्दर बाबू के निर्देश कि प्रतीक्षा थी|
अचानक पहली पंक्ति में खड़ी महिला का बच्चा रोने लगा| गजेन्द्र बाबू पहले तो बहुत तमतमा उठे पर तभी उनका समाज सेवा का भाव जगा और वह मंच से उतर कर उस महिला के पास गए| बच्चे के रोने का कारण पूछा|
'टट्टी कर ली है', जवाब आया|
यह सुनकर गजेन्दर बाबू ने फ़ौरन एक साफ़ लंगोट मंगवाया और खुद बच्चे का लंगोट बदलने लगे| सभी उत्सुक थे कि गजेन्दर बाबू क्या कर रहे हैं! आखिर हमें भी वही करना चाहिए! जब देखा तो जनता भाव-विह्वल हो उठी| गजेन्दर बाबू कि आँखों में भी आंसू आ गए| बच्चे ने अब रोना बंद कर दिया था| गजेन्दर बाबू वापस मंच पर जा पहुंचे और माइक में बोले-
'अगर इस रोती, बिलखती जनता को हँसाना है, तो जनता का लंगोट बदलना होगा| लंगोट में बड़ी शक्ति होती है| हमारे परम ज्ञानी ऋषि मुनि लंगोट ही पहना करते थे| बड़े बड़े शक्तिशाली पहलवान लंगोट पहनते हैं| यहाँ तक कि जापानी सूमो लड़ाके भी लंगोट ही पहनते हैं| हमारे पूर्वजों ने कहा है कि-
दस अंग्रेजी और खोलनी पड़ीं|
नीम्बू निचुड़ा तो नहीं पर हाथ से फ़िसल कर दाल में जा गिरा और दाल का सारा तड़का सफ़ेद कमीज़ पर| सुधाकर जी ने देखा कि कहीं कोई उनकी खिल्ली तो नहीं उड़ा रहा| यह जानकर कि किसी ने उन्हें नहीं देखा उन्हें राहत मिली| फिर अफ़सोस हुआ| और फिर जी खिन्न हो गया| जीवन का कोई महत्व नहीं| अर्थ नहीं| आपके ऊपर दाल गिर जाए और कोई हँसे तक ना| अजी हँसना तो दूर, किसी ने ध्यान तक ना दिया| जीवन अर्थ खो रहा है| कुछ करना होगा|
'कुछ करना होगा!' सुधाकर जी ने घर जाते ही अपने विचार व्यक्त किये| शाम को चाय पर शर्मा जी को भी बताया| फिर यादव जी के यहाँ गए और फिर यादव जी को साथ लेकर पूरे मोहल्ले में तीन घंटे तक सारे घर घूमे| और सबको बताया कि कुछ करने का वक़्त आ गया है| सभी ने हामी भरी|
जब गजेन्दर बाबू को पता चला तो वह डर गए| कहीं लोगो को कुछ करने कि आदत हो गयी तो उनकी वार्ड की सीट का क्या होगा? कहीं यह सुधाकर का बच्चा अगले चुनाव में ना खड़ा हो जाये? अतः कुछ करना होगा| अगले ही दिन शाम को गजेन्दर बाबू ने पार्क में एक अर्जेंट मीटिंग बुला ली| सारे वार्ड को निमंत्रण दिया और वार्ड के सारे कर्मठ लोग एकत्रित हुए| कोई दो हज़ार के लगभग नर-नारी आ पहुंचे|
गजेन्दर बाबू ने फ़ौरन अंग्रेजी निकाल के गिलास में पलट दी और माइक में कहा-
'करना ही क्रिया है, यही हमारी प्रिया है|
जिसने पिया है, उसी ने किया है|'
सभी इस बात से सहमत हुए और कुछ करने कि शपथ ली| अब हम कुछ करके ही दम लेंगे|
'क्या करना होगा?' किसी ने पूछा| 'कुछ विराट करना होगा', गजेन्दर बाबू ने गर्जना की|
'क्या सड़क बनानी होगी?' 'क्या बिजली के खम्बे लगाने होंगे?' 'क्या पानी की टंकी लगानी होगी?' लोगों में प्रश्नों का सैलाब उमड़ पड़ा|
'अरे आन्दोलन लाना होगा! कुछ प्रचंड करना है|' गजेन्दर बाबू ने कुर्सी से उठ कर कहा|
'पर पता भी तो हो की क्या करना है?' किसी ने पूछा|
'अरे अगर यही पता हो की क्या करना है तो करने के लिए रहा ही क्या? जो ज्ञात है उसका कोई मूल्य नहीं| उसमें कोई यश नहीं| जो अज्ञात है, अमूर्त है, वही महान है|' गजेन्दर बाबू के मुख पर विचित्र सी कांति छा गयी|
'कल रात बिजली नहीं आई!' यह आवाज़ आयी| 'और बच्चे सो ना सके|'
गजेन्दर बाबू तमतमा उठे| 'अरे मूर्खों उठो| जागो कि तुम्हे कुछ करना है|'
'यह जीवन लाक्षा-गृह है!
जो जागा है, वही भागा है!
जो सोया है, वह तो अभागा है!'
समूह में जोश कि लहर दौड़ गयी| कुछ युवा नेता आगे आकर नारे लगाने लगे- 'करना है! नहीं तो मरना है!' करीब दस और अंग्रेजी खोलनी पड़ गयीं| 'हम अब करने को तैयार हैं| आन्दोलन के लिए तैयार हैं|' सभी को अब गजेन्दर बाबू के निर्देश कि प्रतीक्षा थी|
अचानक पहली पंक्ति में खड़ी महिला का बच्चा रोने लगा| गजेन्द्र बाबू पहले तो बहुत तमतमा उठे पर तभी उनका समाज सेवा का भाव जगा और वह मंच से उतर कर उस महिला के पास गए| बच्चे के रोने का कारण पूछा|
'टट्टी कर ली है', जवाब आया|
यह सुनकर गजेन्दर बाबू ने फ़ौरन एक साफ़ लंगोट मंगवाया और खुद बच्चे का लंगोट बदलने लगे| सभी उत्सुक थे कि गजेन्दर बाबू क्या कर रहे हैं! आखिर हमें भी वही करना चाहिए! जब देखा तो जनता भाव-विह्वल हो उठी| गजेन्दर बाबू कि आँखों में भी आंसू आ गए| बच्चे ने अब रोना बंद कर दिया था| गजेन्दर बाबू वापस मंच पर जा पहुंचे और माइक में बोले-
'अगर इस रोती, बिलखती जनता को हँसाना है, तो जनता का लंगोट बदलना होगा| लंगोट में बड़ी शक्ति होती है| हमारे परम ज्ञानी ऋषि मुनि लंगोट ही पहना करते थे| बड़े बड़े शक्तिशाली पहलवान लंगोट पहनते हैं| यहाँ तक कि जापानी सूमो लड़ाके भी लंगोट ही पहनते हैं| हमारे पूर्वजों ने कहा है कि-
भागते भूत की लंगोटी भली!
यानी अगर भूत मिल जाये तो उस से उसकी लंगोटी अवश्य मांग लें|'
(तालियों की आवाज़)
जनता झूम उठी| उत्साह की लहर दौड़ गयी| गजेन्दर बाबू ने आगे बोला-
'हमारे आलोचक कहते हैं की आप जनता को लूट रहे हैं, उससे नंगा कर रहे हैं| अरे हम तो सिर्फ लंगोट बदलते हैं| और अगर लंगोट बदलना है तो जनता को, इस देश को नंगा तो करना ही पड़ेगा|'
(तालियों की आवाज़)
'आज से हम अपना चुनाव चिन्ह भी बदलते हैं| हमारा नया चुनाव चिन्ह होगा- लंगोट!!'
दस अंग्रेजी और खोलनी पड़ीं|