Tuesday, February 8, 2011

लंगोट बदलना होगा

'छप्प!'

नीम्बू निचुड़ा तो नहीं पर हाथ से फ़िसल कर दाल में जा गिरा और दाल का सारा तड़का सफ़ेद कमीज़ पर| सुधाकर जी ने देखा कि कहीं कोई उनकी खिल्ली तो नहीं उड़ा रहा| यह जानकर कि किसी ने उन्हें नहीं देखा उन्हें राहत मिली| फिर अफ़सोस हुआ| और फिर जी खिन्न हो गया| जीवन का कोई महत्व नहीं| अर्थ नहीं| आपके ऊपर दाल गिर जाए और कोई हँसे तक ना| अजी हँसना तो दूर, किसी ने ध्यान तक ना दिया| जीवन अर्थ खो रहा है| कुछ करना होगा|

'कुछ करना होगा!' सुधाकर जी ने घर जाते ही अपने विचार व्यक्त किये| शाम को चाय पर शर्मा जी को भी बताया| फिर यादव जी के यहाँ गए और फिर यादव जी को साथ लेकर पूरे मोहल्ले में तीन घंटे तक सारे घर घूमे| और सबको बताया कि कुछ करने का वक़्त आ गया है| सभी ने हामी भरी|

जब गजेन्दर बाबू को पता चला तो वह डर गए| कहीं लोगो को कुछ करने कि आदत हो गयी तो उनकी वार्ड की सीट का क्या होगा? कहीं यह सुधाकर का बच्चा अगले चुनाव में ना खड़ा हो जाये? अतः कुछ करना होगा| अगले ही दिन शाम को गजेन्दर बाबू ने पार्क में एक अर्जेंट मीटिंग बुला ली| सारे वार्ड को निमंत्रण दिया और वार्ड के सारे कर्मठ लोग एकत्रित हुए| कोई दो हज़ार के लगभग नर-नारी आ पहुंचे|

गजेन्दर बाबू ने फ़ौरन अंग्रेजी निकाल के गिलास में पलट दी और माइक में कहा-
'करना ही क्रिया है, यही हमारी प्रिया है|
जिसने पिया है, उसी ने किया है|'

सभी इस बात से सहमत हुए और कुछ करने कि शपथ ली| अब हम कुछ करके ही दम लेंगे|
'क्या करना होगा?' किसी ने पूछा| 'कुछ विराट करना होगा', गजेन्दर बाबू ने गर्जना की|

'क्या सड़क बनानी होगी?' 'क्या बिजली के खम्बे लगाने होंगे?' 'क्या पानी की टंकी लगानी होगी?' लोगों में प्रश्नों का सैलाब उमड़ पड़ा|
'अरे आन्दोलन लाना होगा! कुछ प्रचंड करना है|' गजेन्दर बाबू ने कुर्सी से उठ कर कहा|

'पर पता भी तो हो की क्या करना है?' किसी ने पूछा|
'अरे अगर यही पता हो की क्या करना है तो करने के लिए रहा ही क्या? जो ज्ञात है उसका कोई मूल्य नहीं| उसमें कोई यश नहीं| जो अज्ञात है, अमूर्त है, वही महान है|' गजेन्दर बाबू के मुख पर विचित्र सी कांति छा गयी|

'कल रात बिजली नहीं आई!' यह आवाज़ आयी| 'और बच्चे सो ना सके|'

गजेन्दर बाबू तमतमा उठे| 'अरे मूर्खों उठो| जागो कि तुम्हे कुछ करना है|'
'यह जीवन लाक्षा-गृह है!
जो जागा है, वही भागा है!
जो सोया है, वह तो अभागा है!'

समूह में जोश कि लहर दौड़ गयी| कुछ युवा नेता आगे आकर नारे लगाने लगे- 'करना है! नहीं तो मरना है!' करीब दस और अंग्रेजी खोलनी पड़ गयीं|  'हम अब करने को तैयार हैं| आन्दोलन के लिए तैयार हैं|' सभी को अब गजेन्दर बाबू के निर्देश कि प्रतीक्षा थी|

अचानक पहली पंक्ति में खड़ी महिला का बच्चा रोने लगा|  गजेन्द्र बाबू पहले तो बहुत तमतमा उठे पर तभी उनका समाज सेवा का भाव जगा और वह मंच से उतर कर उस महिला के पास गए|  बच्चे के रोने का कारण पूछा|

'टट्टी कर ली है', जवाब आया|

यह सुनकर गजेन्दर बाबू ने फ़ौरन एक साफ़ लंगोट मंगवाया और खुद बच्चे का लंगोट बदलने लगे| सभी उत्सुक थे कि गजेन्दर बाबू क्या कर रहे हैं! आखिर हमें भी वही करना चाहिए! जब देखा तो जनता भाव-विह्वल हो उठी| गजेन्दर बाबू कि आँखों में भी आंसू आ गए| बच्चे ने अब रोना बंद कर दिया था| गजेन्दर बाबू वापस मंच पर जा पहुंचे और माइक में बोले-

'अगर इस रोती, बिलखती जनता को हँसाना है, तो जनता का लंगोट बदलना होगा| लंगोट में बड़ी शक्ति होती है| हमारे परम ज्ञानी ऋषि मुनि लंगोट ही पहना करते थे| बड़े बड़े शक्तिशाली पहलवान लंगोट पहनते हैं| यहाँ तक कि जापानी सूमो लड़ाके भी लंगोट ही पहनते हैं|  हमारे पूर्वजों ने कहा है कि-
भागते भूत की लंगोटी भली!
यानी अगर भूत मिल जाये तो उस से उसकी लंगोटी अवश्य मांग लें|'
(तालियों की आवाज़)
जनता झूम उठी| उत्साह की लहर दौड़ गयी| गजेन्दर बाबू ने आगे बोला-
'हमारे आलोचक कहते हैं की आप जनता को लूट रहे हैं, उससे नंगा कर रहे हैं| अरे हम तो सिर्फ लंगोट बदलते हैं| और अगर लंगोट बदलना है तो जनता को, इस देश को नंगा तो करना ही पड़ेगा|'
(तालियों की आवाज़)
'आज से हम अपना चुनाव चिन्ह भी बदलते हैं| हमारा नया चुनाव चिन्ह होगा- लंगोट!!'

दस अंग्रेजी और खोलनी पड़ीं|



Wednesday, February 2, 2011

अट्ठाईस दिन

"अब आप क्या करेंगे?"

जी में तो आया कि एक तमाचा जड़ दें - अपने या प्रकाश बाबू के | अपने इसीलिए कि सत्ताईस साल से इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था गुप्ता जी के पास | रही प्रकाश बाबू की बात तो भाई विकल्प नाम कि चीज़ भी तो होती है दुनिया में? विकल्प किसे पसंद नहीं? विकल्प मनुष्य को कर्म की शीघ्रता से बचाता है और वक़्त भी अच्छा काटता है|  यूँ तो गुप्ता जी के पास तीसरा विकल्प भी था पर यमदूत के गाल को कौन सहलाये? क्रोध कितना भी प्रचंड क्यूँ न हो, उसे किस अनुपात में और किस पर व्यक्त करना है यह समझना हर मनुष्य के जीवन के लिए हितकारी है, जीवन चाहे कितना ही छोटा क्यूँ न हो?

"यह फॉर्म भर दीजिये|" दूत ने एक हलके नीले रंग का फॉर्म आगे बढ़ा दिया| "अपना नाम, पिता का नाम, फ़ोन नंबर, वर्तमान पता और स्थाई पता भी लिख दीजिये जहाँ से पिक अप है|"

इकत्तीस दिन! बस | यह सोच कर  गुप्ता जी बैठा जा रहा था | सोचा था की कल से व्यायाम करेंगे, जिम ज्वाइन करेंगे और स्लिम होने के बाद ही प्रोफाइल फोटो खिचवायेंगे | सोच कर आँख में आंसू सा आने लगा और गलती से नाम की जगह फ़ोन नंबर लिख दीया |

" व्हाट ऍन इडिअट सर जी?" बोलकर दूत ने प्रकाश बाबू की तरफ हाई फाइव  हेतु हाथ बढ़ाया तो प्रकाश बाबू ने समझा कि आशीर्वाद दे रहे हैं और झट से अपना सर आगे बढ़ा दिया | दूत का पंजाब प्रकाश बाबू के महाद्वीप से टकराया तो भीषण गर्जना हुई | "फ़ुटबाल बहुत देखते हो, कभी क्रिकेट भी देखा करो!" दूत ने दुत्कारते हुए कहा |

"अब आप क्या करेंगे?" प्रकाश बाबू ने जल्दी से सबका ध्यान मुख्य नायक की तरफ मोड़ा |

"अचार डालूँगा कटहल का | इकत्तीस दिन में तो पक ही जायेगा |" गुप्ता जी ने खीज कर कहा |

"इकत्तीस नहीं गुप्ता जी, सिर्फ अट्ठाईस दिन हैं | अरे आपने सही समय पर रजिस्टर कराया है | फरवरी में प्रतीक्षा सूची बहुत छोटी होती है, इसीलिए तो आपका नंबर झट से आ गया | ज़्यादातर लोग यह स्कीम जुलाई, अगस्त,  या अक्टूबर जैसे ईकत्तीस दिन वाले महीनों में लेते हैं |" दूत ने बोलना जारी रखा | "मार्च में भी अधिक लोग पंजीकरण नहीं कराते इस उम्मीद में कि अपरेज़ल में तनख्वा बढ़ेगी | फिर आजकल तो मई और जून में भी IPL के कारण हमारा टार्गेट पूरा नहीं होता | और जुलाई-अगस्त में प्रतीक्षा सूची इतनी हो जाती है कि रक्षाबंधन तक की छुट्टी रद्द |"

"मेरी माने तो आप आम का ही अचार डाल लें | वक़्त कम है, ना भी पका तो क्या हुआ खट्टापन तो आएगा ही ना |" प्रकाश बाबू ने व्यवहारिक सलाह दी |

गुप्ता जी घबरा गए | इसीलिए नहीं कि इस मौसम में आम कहाँ से मिलेंगे, वह तो आजकल टीवी पर भी बताते हैं कि बोतल में आम आ जाता है किसी भी मौसम में | और फिर उसी बोतल में अचार डाल लो | आम के आम और बोतलों के दाम | ख़याल बहुत हरा था पर किसी की जान पर बनी हो तो पर्यावरण की परवाह किसे?

"अचार डालना बुरा नहीं, पर मेरी माने तो इस अल्पायु का निपुण प्रयोग करें और हमारे व़ेब्पेज पर जाके एक इच्छा सूची यानी विशलिस्ट बना लें |" दूत ने विक्रेता कार्यशाला में अर्जित शिक्षा का इस्तेमाल किया | "आपके मित्र उस सूची पर टिप्पड़ी कर सकते हैं, और तो और आपके गिरते मनोबल को बढ़ा भी सकते हैं आपकी सूछी को पसंद करके |"

"अब आप क्या करेंगे अगले अट्ठायीस दिनों में?"