Wednesday, February 2, 2011

अट्ठाईस दिन

"अब आप क्या करेंगे?"

जी में तो आया कि एक तमाचा जड़ दें - अपने या प्रकाश बाबू के | अपने इसीलिए कि सत्ताईस साल से इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था गुप्ता जी के पास | रही प्रकाश बाबू की बात तो भाई विकल्प नाम कि चीज़ भी तो होती है दुनिया में? विकल्प किसे पसंद नहीं? विकल्प मनुष्य को कर्म की शीघ्रता से बचाता है और वक़्त भी अच्छा काटता है|  यूँ तो गुप्ता जी के पास तीसरा विकल्प भी था पर यमदूत के गाल को कौन सहलाये? क्रोध कितना भी प्रचंड क्यूँ न हो, उसे किस अनुपात में और किस पर व्यक्त करना है यह समझना हर मनुष्य के जीवन के लिए हितकारी है, जीवन चाहे कितना ही छोटा क्यूँ न हो?

"यह फॉर्म भर दीजिये|" दूत ने एक हलके नीले रंग का फॉर्म आगे बढ़ा दिया| "अपना नाम, पिता का नाम, फ़ोन नंबर, वर्तमान पता और स्थाई पता भी लिख दीजिये जहाँ से पिक अप है|"

इकत्तीस दिन! बस | यह सोच कर  गुप्ता जी बैठा जा रहा था | सोचा था की कल से व्यायाम करेंगे, जिम ज्वाइन करेंगे और स्लिम होने के बाद ही प्रोफाइल फोटो खिचवायेंगे | सोच कर आँख में आंसू सा आने लगा और गलती से नाम की जगह फ़ोन नंबर लिख दीया |

" व्हाट ऍन इडिअट सर जी?" बोलकर दूत ने प्रकाश बाबू की तरफ हाई फाइव  हेतु हाथ बढ़ाया तो प्रकाश बाबू ने समझा कि आशीर्वाद दे रहे हैं और झट से अपना सर आगे बढ़ा दिया | दूत का पंजाब प्रकाश बाबू के महाद्वीप से टकराया तो भीषण गर्जना हुई | "फ़ुटबाल बहुत देखते हो, कभी क्रिकेट भी देखा करो!" दूत ने दुत्कारते हुए कहा |

"अब आप क्या करेंगे?" प्रकाश बाबू ने जल्दी से सबका ध्यान मुख्य नायक की तरफ मोड़ा |

"अचार डालूँगा कटहल का | इकत्तीस दिन में तो पक ही जायेगा |" गुप्ता जी ने खीज कर कहा |

"इकत्तीस नहीं गुप्ता जी, सिर्फ अट्ठाईस दिन हैं | अरे आपने सही समय पर रजिस्टर कराया है | फरवरी में प्रतीक्षा सूची बहुत छोटी होती है, इसीलिए तो आपका नंबर झट से आ गया | ज़्यादातर लोग यह स्कीम जुलाई, अगस्त,  या अक्टूबर जैसे ईकत्तीस दिन वाले महीनों में लेते हैं |" दूत ने बोलना जारी रखा | "मार्च में भी अधिक लोग पंजीकरण नहीं कराते इस उम्मीद में कि अपरेज़ल में तनख्वा बढ़ेगी | फिर आजकल तो मई और जून में भी IPL के कारण हमारा टार्गेट पूरा नहीं होता | और जुलाई-अगस्त में प्रतीक्षा सूची इतनी हो जाती है कि रक्षाबंधन तक की छुट्टी रद्द |"

"मेरी माने तो आप आम का ही अचार डाल लें | वक़्त कम है, ना भी पका तो क्या हुआ खट्टापन तो आएगा ही ना |" प्रकाश बाबू ने व्यवहारिक सलाह दी |

गुप्ता जी घबरा गए | इसीलिए नहीं कि इस मौसम में आम कहाँ से मिलेंगे, वह तो आजकल टीवी पर भी बताते हैं कि बोतल में आम आ जाता है किसी भी मौसम में | और फिर उसी बोतल में अचार डाल लो | आम के आम और बोतलों के दाम | ख़याल बहुत हरा था पर किसी की जान पर बनी हो तो पर्यावरण की परवाह किसे?

"अचार डालना बुरा नहीं, पर मेरी माने तो इस अल्पायु का निपुण प्रयोग करें और हमारे व़ेब्पेज पर जाके एक इच्छा सूची यानी विशलिस्ट बना लें |" दूत ने विक्रेता कार्यशाला में अर्जित शिक्षा का इस्तेमाल किया | "आपके मित्र उस सूची पर टिप्पड़ी कर सकते हैं, और तो और आपके गिरते मनोबल को बढ़ा भी सकते हैं आपकी सूछी को पसंद करके |"

"अब आप क्या करेंगे अगले अट्ठायीस दिनों में?"

1 comment:

  1. व्हाट एन आईडिया सर जी ! इस्सी बात पर.. हाई फाइव ! आपकी चतुरता एवं हिंदी भाषा की निपुणता देख कर मन प्रसन्न हो गया :)

    ReplyDelete